जी. एन. साईबाबा: एक शिक्षक से दोस्त तक की यात्रा और उससे सीखे सबक
जी. एन. साईबाबा: एक शिक्षक से दोस्त तक की यात्रा
राहुल पंडिता, एक प्रतिष्ठित पत्रकार, ने हाल ही में प्रोफेसर जी. एन. साईबाबा के साथ बिताए अपने अनुभवों को याद किया। साईबाबा, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रमुख अंग्रेज़ी प्रोफेसर थे, उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए। उनकी मुलाकातें और दोस्ती का सफर 2007-08 से शुरू हुआ जब पंडिता ने पहली बार उनसे ग्वेयर हॉल हॉस्टल में मुलाकात की थी। ये यात्राएँ नई कहानियों और अनुभवों की तरह थीं जिन्होंने पंडिता के जीवन को दिशा दी।
साईबाबा को 2003 से रामलाल आनंद कॉलेज में शिक्षण करते हुए देखा गया। लेकिन 2014 में, व्यापक राजनीतिक और कानूनी उठापटक के बीच, उन्हें माओवादी संपर्क के संदेह में गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया; वह न केवल निलंबित हुए बल्कि उनके पद से भी हटा दिए गए। जब तक वे 2021 में पूरी तरह से निष्कासित नहीं कर दिए गए थे, तब तक उनके कानूनी मुद्दे सुलझ नहीं पाए थे।
माओवादी आंदोलन से हुई मुलाकातें और अनुभव
पंडिता बताते हैं कि साईबाबा के माध्यम से उन्होंने उन क्षेत्रों की यात्राएं कीं जहां माओवादी आंदोलन ने अपनी पकड़ बना रखी थी। इनमें बस्तर, नागपुर और आदिलाबाद जैसे स्थान शामिल थे। इन यात्राओं के दौरान, पंडिता ने उन परिवारों और व्यक्तियों से मुलाकात की जिन्होंने माओवादी आंदोलन के कठिन समय को झेला था। उन्होंने पेड़ी शंकर, सोमानार समा, गज्जला गंगा राम, सन्दे राजमौली, और वड्कापुर चंद्रमौली जैसे माओवादी नेताओं के परिवारों से भी मिले और उनके संघर्ष और बलिदान की कहानियाँ सुनीं।
न्याय के लिए संघर्ष और साईबाबा का निधन
साईबाबा को मार्च 2024 में लगभग एक दशक जेल में बिताने के बाद गिरफ्तारियों से बरी कर दिया गया, लेकिन उनकी वापसी की लड़ाई अधूरी रह गई। तब तक उनका पुनःस्थापन नहीं हुआ था, जब तक की उनका निधन नहीं हो गया। उनके जीवन का यह अध्याय पंडिता के लिए दुखद और विचारणीय रहा।
राहुल पंडिता अपनी ओर से यह आशा व्यक्त करते हैं कि साईबाबा की मृत्यु न केवल न्यायपालिका को झकझोरेगी बल्कि उन मामलों पर भी पुनर्विचार करेगी जिनमें अन्य लोग अब भी विचाराधीन हैं। इसमें सुरेंद्र गडलिंग और उमर खालिद जैसे लोग शामिल हैं, जो अभी भी जेल की सजा काट रहे हैं।
कहानी यही समाप्त नहीं होती, यह हम सभी के लिए एक विचारणीय सन्देश देती है कि कैसे हम न्याय के पक्ष में खड़े हो सकते हैं। साईबाबा की जिंदगी ने ये पक्का कर दिया कि न्याय व्यवस्था की भूमिका पर सवाल उठाना और उन गलत आरोपों को चुनौती देना आवश्यक है जो समाज को अंधकार की ओर धकेलते हैं।
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