‘I Love Muhammad’ बवाल की असली वजह: हिंदू धार्मिक पोस्टर फाड़ने का वीडियो सामने आया
कानपुर में ईद-मिलाद-उन-नबी के दौरान लगाए गए ‘I Love Muhammad’ लाइट बोर्ड की वजह से जो बवाल शुरू हुआ, उसकी असली जड़ कुछ और ही थी — जब मुस्लिम युवा ने दर्जनों हिंदू धार्मिक पोस्टर फाड़ दिए, और CCTV में ये दृश्य सामने आया। ये न सिर्फ एक अनुशासन का मामला था, बल्कि एक जानबूझकर किए गए साम्प्रदायिक तनाव की शुरुआत थी। पुलिस की FIR में स्पष्ट लिखा गया: ‘मुस्लिम युवा ने ऐसा इसलिए किया ताकि क्षेत्र में अशांति फैले और साम्प्रदायिक विवाद उत्पन्न हों।’ ये बयान किसी भी धार्मिक आंदोलन की नहीं, बल्कि एक रणनीतिक उत्तेजना की निशानदेही है।
बोर्ड नहीं, पोस्टर फाड़ना था विवाद का दहशत भरा मोड़
कानपुर के एक इलाके में ईद मिलाद के लिए एक नया प्रचलन शुरू हुआ: ‘I Love Muhammad’ लिखा बोर्ड। ये पहली बार था, और इसका इरादा सिर्फ शोभा बढ़ाना था। लेकिन जब लोगों ने इसे हटाने की कोशिश की, तो पुलिस ने बोर्ड को दूसरी जगह ले जाकर शांति बहाल करने की कोशिश की। लेकिन ये समाधान बस एक चिंगारी थी। जब बरावफात की प्रार्थना समाप्त हुई, तो युवा समूह ने अपनी नाराजगी का एक अलग तरीका चुना — हिंदू मंदिरों के बाहर लगे पोस्टर, जिनमें देवी-देवताओं की तस्वीरें थीं, उन्हें फाड़ दिया। ये दृश्य CCTV में साफ दिखा। ये न सिर्फ अपमान था, बल्कि एक ऐसा संकेत था जिसे समझने वाले तुरंत तनाव के बादल देख सकते थे।
बरेली से शुरू हुआ बंदूक और पत्थर का खेल
जब ये वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो बरेली में जुम्मा की नमाज के बाद सैकड़ों लोग गलियों में उतर आए। उनके हाथों में ‘I Love Muhammad’ के पोस्टर थे, और आवाज़ें थीं — ‘हम अपने पैगंबर के लिए जान दे सकते हैं।’ लेकिन एक वीडियो ने सबको हैरान कर दिया: इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के डॉ. नफीस ने पुलिस इंस्पेक्टर को घूंट देते हुए कहा, ‘अगर आपने पोस्टर हटाया, तो मैं आपके हाथ काट दूंगा।’ ये न सिर्फ धमकी थी, बल्कि एक अपराध की घोषणा थी। इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया, और युवा ने पत्थर बरसाए। एक बार जब अपराध शुरू हो गया, तो शांति रोकना लगभग असंभव हो गया।
राजनीति और धर्म: एक दूसरे के साथ नहीं, बल्कि आपस में लड़ रहे थे
राजनीति ने इस मामले को अपने लिए बर्तन बना लिया। अखिलेश यादव ने कहा — ‘अगर हिंदू और मुस्लिम एक-दूसरे को ‘I Love You’ कहें, तो सब ठीक हो जाएगा।’ लेकिन ये बयान एक नरम आहट थी, जबकि ब्रिजेश पाठक ने इसे ‘विपक्ष की साजिश’ बता दिया। राघुराज सिंह ने सीधे कह दिया — ‘इन्हें पीटो, जेल डालो।’ इस बीच मौलाना महमूद मदानी ने एक अलग आवाज़ उठाई: ‘धर्म नहीं, मानवता अब अहम है।’ लेकिन ये आवाज़ फर्श पर गिर गई। राजनीति और धर्म अब एक-दूसरे के खिलाफ नहीं, बल्कि आपस में लड़ रहे थे।
महाराष्ट्र, हरियाणा, बिहार: बवाल देश भर में फैल गया
कानपुर की चिंगारी अब पूरे देश में आग बन गई। सोनिपेट में ‘I Love Muhammad’ के साथ ‘लव जिहाद’ के नारे लगे। महाराष्ट्र में कुछ वक्ताओं ने सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ धमकियाँ दीं। भागलपुर में हिंदू घरों पर पत्थर बरसे। अपराधियों के नाम नहीं, बल्कि धर्म के नाम पर आग लगाई गई। पुलिस ने लगभग 70 लोगों को गिरफ्तार किया। कुछ घर जल गए, दुकानें लूटी गईं। लेकिन जब एक तरफ लोग पोस्टर फाड़ रहे थे, तो दूसरी तरफ कुछ ने उन्हें अपने अहंकार के लिए बलिदान बना दिया।
सोशल मीडिया: धर्म की जगह ट्रेंड बन गया
‘I Love Muhammad’ एक नारा नहीं, एक हैशटैग बन गया। इंस्टाग्राम पर रिलीज हुए वीडियो जिनमें बच्चे पैगंबर के नाम लेकर गाना गा रहे थे, वो देश के उत्तरी हिस्से में वायरल हुए। लेकिन ये वीडियो अक्सर एक तरफ की बात बताते थे — भावनाओं को जगाना, लेकिन उन्हें नियंत्रित न करना। एक नारा जब एक ट्रेंड बन जाता है, तो उसकी जिम्मेदारी भी बदल जाती है। क्या एक बच्चे का पैगंबर के नाम से गाना, दूसरे के धार्मिक चित्र फाड़ने का औचित्य बन जाता है? ये सवाल किसी के मुँह से नहीं निकल रहा।
क्या आग बुझेगी? या ये नया नमूना बन जाएगा?
अब तक का सब कुछ एक अजीब दौर की निशानदेही करता है: एक ऐसा दौर जहाँ भावनाओं को लाइव स्ट्रीम किया जाता है, और उन्हें राजनीति के लिए बेचा जाता है। कानपुर के बोर्ड की जगह, अब एक वीडियो देश को हिला रहा है। अगर इस तरह के घटनाक्रम अब नियम बन गए, तो अगला बवाल कहाँ से शुरू होगा? क्या हम अपनी भावनाओं को दूसरे के विश्वास के खिलाफ लड़ने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं? ये सवाल अब सिर्फ एक रिपोर्ट का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक चेतना का परीक्षण है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
‘I Love Muhammad’ बोर्ड क्यों विवाद का केंद्र बना?
‘I Love Muhammad’ बोर्ड का इरादा सिर्फ धार्मिक श्रद्धा दर्शाना था, लेकिन ये पहली बार था कि ऐसा लाइट बोर्ड ईद मिलाद के लिए लगाया गया। इसकी अज्ञातता और इसके सामने आने का तरीका — एक बड़े धार्मिक उत्सव के दौरान — ने लोगों में असुरक्षा का भाव पैदा किया। लेकिन वास्तविक विवाद तब शुरू हुआ जब इसके बाद हिंदू पोस्टर फाड़े गए, जो एक जानबूझकर तनाव फैलाने का प्रयास था।
बरेली में डॉ. नफीस का वीडियो क्यों इतना विवादित हुआ?
डॉ. नफीस का वीडियो इसलिए वायरल हुआ क्योंकि यहाँ धार्मिक भावना के नाम पर शारीरिक धमकी दी गई — ‘हाथ काट दूंगा’ जैसा बयान किसी भी धर्म के नाम पर अस्वीकार्य है। ये न सिर्फ अपराध की घोषणा थी, बल्कि न्याय प्रणाली के प्रति अवमानना थी। इस वीडियो ने बताया कि कैसे एक धार्मिक नेता ने अपनी आवाज़ को अपराध के लिए इस्तेमाल किया।
70 गिरफ्तारियाँ किन अपराधों के लिए हुईं?
गिरफ्तारियाँ धारा 153A (साम्प्रदायिक तनाव पैदा करना), 153B (धार्मिक अपमान), 341 (अवैध कार्य), और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत हुईं। कुछ लोगों पर पत्थर फेंकने, दुकानें लूटने और पुलिस को घेरने का आरोप लगा। कुछ ने अपने घरों को बचाने के लिए पत्थर फेंके, लेकिन अधिकांश आरोपी उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने शुरुआत में हिंदू पोस्टर फाड़े थे।
सोशल मीडिया पर ‘I Love Muhammad’ हैशटैग क्या कर रहा है?
हैशटैग एक धार्मिक भावना को जगा रहा है, लेकिन इसके साथ ही इसे एक राजनीतिक औजार बना दिया गया है। वीडियो जिनमें बच्चे गाना गा रहे हैं, वो भावनात्मक रूप से प्रभावशाली हैं, लेकिन इन्हें अक्सर उसी तरह इस्तेमाल किया जा रहा है जैसे दूसरे तरफ पोस्टर फाड़े जा रहे हैं — एक भावना को दूसरी भावना के खिलाफ बर्तन बनाकर।
क्या ये घटना अगले चुनावों को प्रभावित करेगी?
बिल्कुल। ये घटना उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में साम्प्रदायिक भावनाओं को अधिक गहरा कर रही है। जो लोग अपने विश्वास को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, वो अब अपने वोट को भावनाओं के आधार पर देने की ओर बढ़ रहे हैं। राजनीतिक दल अब इसी भावना को अपने चुनावी नारे बना रहे हैं — जिससे भविष्य में और अधिक तनाव हो सकता है।
क्या कोई शांति के लिए आवाज़ उठ रही है?
हाँ, मौलाना महमूद मदानी और कुछ स्थानीय इमाम शांति के लिए अपील कर रहे हैं, लेकिन उनकी आवाज़ अक्सर वायरल वीडियो और राजनीतिक नारों के बीच दब जाती है। शांति की आवाज़ तब तक सुनी नहीं जाएगी, जब तक कि लोग अपनी भावनाओं को एक नारे के रूप में नहीं बदल देते, बल्कि एक संवेदनशीलता के रूप में मानते।