डोटासरा ने कहा- भजनलाल सरकार पांच साल चलेगी, लेकिन जनता को होगी तकलीफ

15 दिसंबर 2025 को उदयपुर में आयोजित कांग्रेस सम्मेलन में गोविंद सिंह डोटासरा, राजस्थान कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष, ने एक ऐसा बयान दिया जिसने पार्टी के अंदर ही तूफान मचा दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि भजनलाल शर्मा की भारतीय जनता पार्टी सरकार पूरे पांच साल चलेगी — लेकिन इस दौरान आम आदमी को बहुत तकलीफ होगी। यह बयान, बस एक दिन पहले जोधपुर में अशोक गहलोत द्वारा दिए गए बयान के ठीक विपरीत था, जिसमें गहलोत ने दावा किया था कि बीजेपी में भजनलाल को हटाने का षड्यंत्र चल रहा है। अब एक ही पार्टी के दो वरिष्ठ नेता एक-दूसरे के बयान के खिलाफ खड़े हो गए हैं। और इसका मतलब? राजस्थान कांग्रेस के अंदर गुटबाजी का नया दौर शुरू हो चुका है।

बयानों में उलट-पुलट: एक ही नेता, अलग-अलग रणनीति

डोटासरा का यह बयान उनके पिछले बयानों के साथ मेल नहीं खाता। 7 फरवरी 2025 को News18 Rajasthan के साक्षात्कार में उन्होंने कहा था: "सरकार 5 साल नहीं चलेगी"। उन्होंने तब कहा था कि विधानसभा में सरकार को "पटनी देने" का काम शुरू हो चुका है और उन्हें "पर्चियां बदलनी पड़ेंगी"। फिर 14 दिसंबर 2025 को ABP Live के सामने उन्होंने कहा था कि सरकार का "पतन शुरू हो चुका है"। लेकिन अब? अचानक बदलाव। एक ऐसा बयान जो न सिर्फ पार्टी के अंदर उलझन पैदा कर रहा है, बल्कि विपक्ष की रणनीति को भी अस्थिर कर रहा है।

गहलोत के षड्यंत्र का दावा: डोटासरा का जवाब

जब मीडिया ने डोटासरा से पूछा कि गहलोत के बयान का क्या मतलब है, तो उन्होंने कहा — "उनके पास कोई इनपुट होगा, तभी उन्होंने कहा है।" यह जवाब बेहद रहस्यमय था। क्या गहलोत को दिल्ली से कोई जानकारी मिली है? क्या उन्हें बीजेपी के अंदर के गुप्त संवाद का पता चल गया है? या फिर डोटासरा इस बात को छिपा रहे हैं कि उनके पास भी ऐसी ही जानकारी है, लेकिन उन्होंने इसे अलग तरह से इस्तेमाल किया है? उन्होंने गहलोत के बारे में कहा — "वे इतने अनुभवी नेता नहीं हैं जितने गहलोत हैं"। यह बात साफ कर रही है कि यह सिर्फ रणनीति का फर्क नहीं, बल्कि नेतृत्व के बारे में भी एक गहरा अंतर है।

सरकार की कार्यक्षमता पर विरोध का नया तरीका

डोटासरा ने भजनलाल शर्मा के दावों को खंडित करते हुए कहा कि सरकार ने पांच साल के वादों में से मात्र 30% ही पूरा किया है। जबकि शर्मा ने 14 दिसंबर को ओटीएस के भगवत सिंह मेहता सभागार में दावा किया था कि 70% काम पूरे हो चुके हैं। डोटासरा ने राज्य में कानून-व्यवस्था को "चरमरा गई", शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को "खराब", बिजली व्यवस्था को "लड़खड़ाती" और किसानों को "यूरिया के लिए दर-दर भटकते" बताया। युवाओं के लिए रोजगार का अभाव, उनके अनुसार, "गहरा असंतोष" पैदा कर रहा है। लेकिन अब उनका दृष्टिकोण बदल गया है — वे अब नहीं कह रहे कि सरकार गिरेगी, बल्कि कह रहे हैं कि वह चलेगी, और हम उसके दौरान जनता की तकलीफ को उजागर करेंगे।

विपक्ष की रणनीति: नेता प्रतिपक्ष के नेतृत्व में तैयारी

डोटासरा ने विधानसभा के आगामी सत्र में सरकार को "मजबूती से घेरने" का ऐलान किया है। यह जिम्मेदारी टीकाराम जूली, राजस्थान के नेता प्रतिपक्ष, के हाथों में है। यह एक साफ संकेत है कि कांग्रेस अब विधानसभा में अपनी रणनीति बदल रही है — न तो उत्पात का डर दिखाना, न ही षड्यंत्र की बात करना। अब बात है निरंतर निगरानी की। जब सरकार के वादे टूटेंगे, तो विपक्ष उन्हें लाइव टीवी पर दिखाएगा। यह एक लंबी लड़ाई की रणनीति है — जहां विजय चुनाव से नहीं, बल्कि जनता के असंतोष को बढ़ाकर मिलेगी।

दो धाराएं, एक पार्टी: गहलोत गुट बनाम डोटासरा गुट

दो धाराएं, एक पार्टी: गहलोत गुट बनाम डोटासरा गुट

अब राजस्थान कांग्रेस में दो धाराएं साफ दिख रही हैं। एक ओर अशोक गहलोत — जो 2028 के चुनाव की संभावना को देख रहे हैं और जल्दी चुनाव की गुप्त तैयारी में लगे हैं। दूसरी ओर गोविंद सिंह डोटासरा — जो मानते हैं कि चुनाव तब होगा जब सरकार का विश्वास खत्म हो जाएगा। गहलोत गुट ने जोधपुर में षड्यंत्र का ड्रामा बनाया। डोटासरा गुट ने उदयपुर में एक बड़ा विरोध का ढांचा बनाया। एक नेता अपने नाम के लिए तैयार है। दूसरा, अपने विरोध के लिए।

कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच अब एक बात सामने आ रही है — इस बार गुटबाजी सिर्फ बयानों तक सीमित नहीं है। यह रणनीति का टकराव है। एक तरफ चुनाव की तैयारी, दूसरी तरफ जनता के दर्द को लंबे समय तक उजागर करने की रणनीति। और जब दोनों अलग-अलग रास्ते चलते हैं, तो पार्टी का एकत्व कैसे बना रहेगा?

2028 के चुनाव की रणनीति पर निर्भरता

विश्लेषकों का मानना है कि यह अंतर्द्वंद्व असल में 2028 के विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति के आधार पर बना है। गहलोत गुट के लिए अगर वर्तमान सरकार जल्द गिर जाए, तो चुनाव की तैयारी जल्दी शुरू हो जाएगी। लेकिन डोटासरा गुट के लिए यही देरी एक अवसर है — जब तक सरकार चलेगी, उसकी असफलताओं को जनता के सामने रखा जाएगा। और जब वो असफलताएं इतनी बड़ी हो जाएंगी कि लोग भी बोल उठें, तो चुनाव की जीत खुद आ जाएगी।

इस बीच, जोधपुर और उदयपुर के बयानों के बीच एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है — क्या कांग्रेस अब अपने आप को एक तरफ खींच रही है? या फिर यह दोनों रणनीतियां एक दूसरे के पूरक हैं? अगर दोनों बयान एक साथ बात करें, तो यह लगता है कि कांग्रेस दोहरी रणनीति अपना रही है — एक ओर षड्यंत्र की बात करके लोगों को डराना, दूसरी ओर सरकार की असफलताओं को लंबे समय तक चलाकर जनता को उबाऊ बनाना।

Frequently Asked Questions

डोटासरा के बयान से कांग्रेस के अंदर क्या असर पड़ा है?

डोटासरा के बयान से कांग्रेस में दो धाराएं सामने आ गईं — एक गहलोत गुट जो जल्द चुनाव की तैयारी कर रहा है, और दूसरा डोटासरा गुट जो सरकार के पांच साल पूरे होने तक विरोध जारी रखना चाहता है। कार्यकर्ताओं में गुटबाजी की चर्चा तेज हो गई है, और कई नेताओं को लग रहा है कि पार्टी का एकत्व खतरे में है।

गहलोत और डोटासरा के बीच अंतर क्यों है?

गहलोत ने षड्यंत्र के जरिए सरकार को गिराने की रणनीति अपनाई है, जबकि डोटासरा मानते हैं कि सरकार पांच साल चलेगी, इसलिए विरोध को लंबे समय तक चलाना जरूरी है। गहलोत चुनाव की तारीख पर ध्यान दे रहे हैं, जबकि डोटासरा जनता के असंतोष को बढ़ाने पर फोकस कर रहे हैं।

डोटासरा के पिछले बयान और नए बयान में क्या अंतर है?

फरवरी और दिसंबर 2025 में डोटासरा ने कहा था कि सरकार गिरेगी और पर्चियां बदलनी पड़ेंगी। लेकिन 15 दिसंबर 2025 को उन्होंने कहा कि सरकार पांच साल चलेगी। यह बदलाव उनकी रणनीति को लंबी अवधि की ओर ले जाता है — अब वे विरोध को निरंतर बनाने की बजाय जनता के दर्द को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

टीकाराम जूली की भूमिका क्या है?

टीकाराम जूली विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष हैं और डोटासरा के निर्देश पर अगले सत्र में सरकार को घेरने की जिम्मेदारी उनके हाथों में है। उनका काम होगा — बजट घोषणाओं, कानून-व्यवस्था, शिक्षा और बिजली के मुद्दों पर सरकार को लगातार सवाल उठाना, ताकि जनता को लगे कि विपक्ष सच बोल रहा है।