अमेरिकी शेयर बाजार: अप्रैल 2025 क्रैश से अगस्त रिकवरी तक का बड़ा विश्लेषण

दो दिनों में 6.6 ट्रिलियन डॉलर स्वाहा, फिर रिकॉर्ड के पास वापसी: 2025 की सबसे बड़ी बाजार कहानी

दो ट्रेडिंग सेशंस में 6.6 ट्रिलियन डॉलर मिट जाना—इतिहास में ऐसा बहुत कम हुआ है। अप्रैल 2025 की शुरुआत में यही हुआ, और कुछ ही महीनों में बाजार फिर से रिकॉर्ड के करीब पहुंच गया। विरोधाभास लग रहा है? यही तो अमेरिकी शेयर बाजार की असली तस्वीर है—डर की तेज लहर और भरोसे की तेज वापसी।

2 अप्रैल 2025 की दोपहर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ नीति का ऐलान आया और फ्यूचर्स सीधे फिसल गए। S&P 500 फ्यूचर्स 3.9% टूटे, Nasdaq-100 4.7% और डॉव फ्यूचर्स 2.7% नीचे। अगले दिन, 3 अप्रैल, महामारी के बाद की सबसे खराब ट्रेडिंग दिखी—Nasdaq कम्पोजिट 1,600 अंकों की गिरावट के साथ ध्वस्त, S&P 500 का 4.84% और डॉव का 1,679 अंक (3.98%) का नुकसान। स्मॉलकैप्स का बैरोमीटर रसेल 2000 6.59% टूटा और भालू बाज़ार में पहुंच गया।

4 अप्रैल को चीन की 34% की काउंटर-टैरिफ मार ने आग में घी डाल दिया। डॉव 2,231 अंक (5.5%) गिरा, S&P 500 लगातार दूसरे दिन 5.97% टूटा और Nasdaq 5.8% गिरकर खुद भी भालू बाज़ार में दाखिल। सिर्फ दो दिनों में डॉव 4,000 अंकों से ज्यादा गिरा (9.48%), S&P 500 में 10% की कटौती और Nasdaq 11% ध्वस्त—इतिहास की सबसे बड़ी दो-दिवसीय वैल्यू इरेज़र।

डर का इंडेक्स कहे जाने वाले Cboe VIX ने 15 पॉइंट छलांग लगाकर 45.31 पर क्लोज किया—2020 क्रैश के बाद का उच्च स्तर। कच्चे तेल ने भी राहत नहीं दी—7% से ज्यादा गिरकर 2021 के दामों पर बंद हुआ। इस बीच एक और रिकॉर्ड बना: डॉव ने लगातार कई दिनों तक 1,500 से ज्यादा अंकों की गिरावट दिखाई—अभूतपूर्व।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। चार महीने भी नहीं लगे और अगस्त 2025 में वही बाज़ार पुराने हाई के पास लौट आया। 22 अगस्त 2025 को S&P 500 6,370.17, डॉव 44,785.50 और Nasdaq 21,100.31 पर दिखे—दिन भर में हल्की गिरावट (0.34%-0.40%) के बावजूद लेवल्स रिकॉर्ड के आसपास ही।

ये रिबाउंड किस दम पर? निवेशकों का फोकस टैरिफ की खबरों से हटकर मूल आर्थिक संकेतकों पर लौटा—स्थिर कंज्यूमर स्पेंडिंग, ठीक-ठाक कॉरपोरेट अर्निंग्स और फेड का संतुलित कम्युनिकेशन। फेड चेयर जेरोम पॉवेल की टोन ने भरोसा दिया, भले ही हालिया वक्तव्यों में दर कटौती पर झिझक साफ दिखी। शिकागो फेड के ऑस्टन गूल्सबी ने पिछले महीने के प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स (PPI) को ‘खतरनाक डेटा पॉइंट’ कहा—यानी महंगाई को लेकर सतर्कता अभी बनी हुई है।

अब स्नैपशॉट देखें: 10-वर्षीय अमेरिकी बॉन्ड यील्ड 4.31%, डॉलर इंडेक्स 98.66, और VIX 16.44 पर सामान्य दायरे में। बिटकॉइन 112,690 डॉलर पर मजबूत, जबकि WTI क्रूड 63.39 डॉलर—तेल की नरमी महंगाई के लिए प्लस है।

इस साल की खासियत ये है कि बढ़त सिर्फ टेक में नहीं फंसी। 2023 और 2024 में टेक और कम्युनिकेशन सर्विसेज आगे थे, 2025 में इंडस्ट्रियल्स, यूटिलिटीज और फाइनेंशियल्स तीनों जुलाई में नए ऑल-टाइम हाई पर दिखे। यानी रैली की चौड़ाई बढ़ी—ये किसी भी टिकाऊ रिकवरी का अच्छा संकेत माना जाता है।

क्रैश की जड़, रिकवरी की रफ्तार और आगे का रोडमैप

क्रैश की जड़, रिकवरी की रफ्तार और आगे का रोडमैप

टैरिफ की खबर बाजारों को इतनी जोर से क्यों हिलाती है? सीधा असर कंपनियों की लागत पर पड़ता है—इम्पोर्ट महंगा, सप्लाई चेन में देरी, इनपुट प्राइस ऊपर, मार्जिन पर चोट। ऊपर से अगर पार्टनर देश काउंटर-टैरिफ लगा दे, तो एक्सपोर्ट्स को भी चोट लगती है। निवेशक तुरंत भविष्य के प्रॉफिट्स का डिस्काउंट ज्यादा करने लगते हैं—यही वैल्यूएशन कंप्रेशन कहलाता है।

ऐसे समय में मार्केट की गिरावट अक्सर खुद को तेज करती जाती है। स्टॉप-लॉस ट्रिगर, मार्जिन कॉल्स, हाई-बीटा स्टॉक्स में घबराहट—और बिकवाली फैल जाती है। वोलैटिलिटी बढ़ती है, ऑप्शंस की कीमतें चढ़ती हैं और शॉर्ट-टर्म डेरिवेटिव पोजिशन्स नुकसान से बचने के लिए और बिकवाली करवाती हैं। अप्रैल के उन दो दिनों में यही डायनेमिक्स हावी रहा।

फिर रिकवरी इतनी तेज कैसे आई? दो वजहें सबसे अहम रहीं। पहली—मूल अर्थव्यवस्था का फंडामेंटल बुरा नहीं था। रिटेल स्पेंडिंग टिकाऊ रही, जॉब मार्केट ढीला जरूर पड़ा पर टूट नहीं। दूसरी—कंपनियों ने गाइडेंस और कॉस्ट-कटिंग में फुर्ती दिखाई; कई सेक्टरों में इन्वेंटरी मैनेजमेंट सुधरा और कैपेक्स चुनिंदा प्रोजेक्ट्स पर केंद्रित रहा।

फेड की भूमिका भी कम नहीं। पॉवेल ने भाषा ऐसी रखी जिसने पॉलिसी को डेटा-निर्भर और लचीला दिखाया—यानी महंगाई ठंडी पड़ी तो स्पेस है, भड़की तो कड़ा रुख भी संभव। दरअसल, हाल के भाषणों में फेड स्पीकर दर कटौती के लिए उतावले नहीं दिखे—और यही चीज़ बाजार को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की उम्मीद के साथ आगे देखने देती है, क्योंकि जल्दबाजी में ईज़िंग का मतलब महंगाई की वापसी भी हो सकता है।

2025 का दूसरा बड़ा बदलाव—रैली की चौड़ाई। जब सिर्फ कुछ मेगा-टेक स्टॉक्स बाजार उठाते हैं, तो कंधे कमजोर पड़ते हैं। इस साल इंडस्ट्रियल्स, यूटिलिटीज और फाइनेंशियल्स का आउटपरफॉर्म करना बताता है कि अर्निंग्स सुधार कई सेक्टरों में फैल रहा है। यूटिलिटीज का चढ़ना अक्सर बॉन्ड-यील्ड, डिफेंसिव कैश फ्लो और रेट-सेन्सिटिव मॉडल का कॉम्बो दिखाता है; फाइनेंशियल्स के लिए 4%+ 10Y यील्ड नेट इंटरेस्ट मार्जिन में मददगार रहती है, बशर्ते क्रेडिट क्वालिटी ठीक रहे।

इतिहास भी यही सिखाता है—क्रैश स्थायी नहीं होते, पर उनकी रिकवरी का समय अलग-अलग रहा है। मार्च 2020 का कोविड-क्रैश चार महीनों में भर गया—150 साल के इतिहास में सबसे तेज़। लेकिन दिसंबर 2021 से शुरू भालू बाज़ार को उबरने में 18 महीने लगे। इसलिए ‘बाजार हमेशा उबरते हैं’ वाली लाइन तो सही है, मगर ‘कब’—ये सवाल हर बार नया होता है।

अभी अनिश्चितता किस पर है? शीर्ष पर टैरिफ ही है। ऊंचे टैरिफ का असर इम्पोर्ट-इन्फ्लेशन के रूप में आ सकता है—CPI और PPI में फिर उछाल हुआ तो फेड को सख्त रहना पड़ेगा। कंपनियों के लिए ये डबल हेडविंड है—कास्ट बढ़े और डिमांड धीमी पड़े। दूसरी तरफ तेल का 63 डॉलर के आसपास रहना राहत है, पर जियोगियोपॉलिटिक्स किसी भी वक्त सप्लाई शॉक दे सकता है।

मौजूदा तस्वीर में ये लेवल्स काबिले-गौर हैं—S&P 500: 6,370.17, डॉव: 44,785.50, Nasdaq: 21,100.31। यील्ड 4.31% पर टिके हैं, डॉलर इंडेक्स 98.66 मतलब 2022-23 के ऊंचे दौर से नीचे, और VIX 16.44 यानी डर शांत। क्रिप्टो की मजबूती (BTC 112,690) रिस्क एपेटाइट का एक और इशारा है, हालांकि क्रिप्टो का अपना चक्र चलता है।

ये सब सुनकर सवाल आता है—अब आगे क्या? तीन बड़े रास्ते दिखते हैं:

  • सॉफ्ट लैंडिंग: महंगाई कंट्रोल में, अर्निंग्स स्थिर, फेड धीमा और डेटा-निर्भर—बाजार नए हाई बनाता रहे।
  • स्टिकी इन्फ्लेशन: टैरिफ और वेजेज से दाम ऊपर—फेड कटौती टालता है, वैल्यूएशन पर दबाव, रिटर्न्स रेंज-बाउंड।
  • ग्रोथ स्केयर: डिमांड धीमी, अर्निंग्स गाइडेंस कट, डिफेंसिव्स आउटपरफॉर्म—वोलैटिलिटी लौट सकती है।

निवेशकों ने इस साल एक और चीज़ बदली—ब्रेड्थ। नए हाई बनाने वाले स्टॉक्स की संख्या बढ़ी, सेक्टर बदलाव तेज हुआ। इंडस्ट्रियल्स और यूटिलिटीज के साथ फाइनेंशियल्स की वापसी ने पोर्टफोलियो में विविधता का महत्व फिर याद दिलाया। जो रैली सिर्फ कुछ नामों पर टिकती है, वो गिरावट में ज्यादा चोट खाती है; फैली हुई रैली का गिरना भी फैलता है, पर झटका कम होता है।

मूल्यांकन की बात करें तो बड़े इंडेक्स रिकॉर्ड के पास हैं, यानी मल्टीपल्स पर सवाल लाजिमी। अगर अर्निंग्स डिलीवर करती रहीं तो ऊंचे मल्टीपल्स टिक सकते हैं; वरना छोटी-छोटी नकारात्मक खबरें भी 5-7% की स्विंग दे सकती हैं। यही वजह है कि कंपनियों का फॉरवर्ड गाइडेंस इस सीजन का सबसे अहम हिस्सा होगा—मार्जिन, ऑर्डर बुक, कैपेक्स, और शेयर बायबैक प्लान्स पर बाजार की नजर टिकी है।

फेड-ट्रैकर के लिए आने वाले डेटा—CPI, PPI, PCE और नॉन-फार्म पेरोल—हर बार दांव बदलेंगे। पिछले महीने के PPI को ‘खतरनाक’ कहकर गूल्सबी ने यही संकेत दिया कि एक प्रिंट भी नैरेटिव बदल सकता है। डॉलर 98-99 के दायरे में रहा तो मल्टीनेशनल्स को FX राहत मिल सकती है; डॉलर फिर चढ़ा तो एक्सपोर्ट-एरनिंग्स में FX हेडविंड लौटेगा।

कमोडिटी की तरफ देखें तो 63 डॉलर का WTI ऊर्जा कॉस्ट को काबू में रखता है—ट्रांसपोर्ट, केमिकल्स, एयरलाइंस और इंडस्ट्रियल्स के लिए पॉजिटिव। पर अगर टैरिफ्स सप्लाई चेन को झटका दें, इनपुट कॉस्ट में उछाल आए तो ओवरऑल महंगाई पर तेल की राहत भी सीमित पड़ सकती है।

टेक और कम्युनिकेशन सर्विसेज—जो 2023-24 के सुपरस्टार थे—2025 में भी महत्वपूर्ण हैं, मगर ओवरओनरशिप और वैल्यूएशन के चलते उनमें चॉपी ट्रेडिंग दिखी। यही वजह है कि क्वालिटी इंडस्ट्रियल्स, ग्रिड/नवीकरणीय और यूटिलिटीज ने डिफेंसिव-कम-ग्रोथ का बैलेंस देकर बेहतर रिस्क-रिवॉर्ड पेश किया। फाइनेंशियल्स के लिए क्रेडिट कॉस्ट और कमर्शियल रियल एस्टेट पर अपडेट्स अभी भी चेकलिस्ट में सबसे ऊपर हैं।

अगर आप भारत में हैं और अमेरिकी बाजार ट्रैक करते हैं, तो एक-आध और एंगल काम के हैं। डॉलर-रुपया चाल आपके रिटर्न्स बदल देती है—US ETFs/फंड्स में रूपया मजबूत हुआ तो USD रिटर्न्स का कुछ हिस्सा कटता है। भारतीय आईटी सर्विसेज का बड़ा रेवेन्यू अमेरिका से आता है—US कैपेक्स, बैंकिंग और टेक स्पेंड पर उनकी अर्निंग्स निर्भर रहती हैं। धातु और केमिकल्स में अमेरिकी मांग और टैरिफ-स्ट्रक्चर कीमतों पर असर डाल सकता है।

अब ‘क्या देखें’ की छोटी सूची जेब में रखिए:

  1. कंपनी गाइडेंस: मार्जिन, ऑर्डर बुक, बैकलॉग और बायबैक/डिविडेंड प्लान।
  2. महंगाई डेटा: CPI/PPI/PCE—टैरिफ-पासथ्रू दिख रहा है या नहीं।
  3. फेड कम्युनिकेशन: डेटा-निर्भर टोन बरकरार है या कड़ा रुख? कटौती की टाइमलाइन खिसक रही है?
  4. ब्रेड्थ इंडिकेटर्स: कितने स्टॉक्स नए हाई बना रहे हैं, कितने 50/200-DMA के ऊपर हैं।
  5. कमोडिटी और डॉलर: तेल 60-70 डॉलर में रहा तो राहत, डॉलर 100 के ऊपर गया तो मल्टीनेशनल्स पर FX दबाव।

अप्रैल 2025 की गिरावट ने एक बात फिर साबित की—नीति-निर्णय और जियोपॉलिटिक्स मार्केट को एक झटके में हिला सकते हैं। लेकिन उसी साल की रिकवरी ने ये भी दिखाया कि जब फंडामेंटल्स टिके रहें, कम्युनिकेशन साफ हो और अर्निंग्स डिलीवर करें तो भरोसा जल्दी लौट आता है। अभी की तस्वीर में डर के इंडिकेटर्स शांत हैं, सेक्टर-ब्रेड्थ ठीक है और तेल-डॉलर संयमित—पर टैरिफ्स और महंगाई का रास्ता खुला है। यहीं से आगे की चाल तय होगी।

जो निवेशक सिर्फ हेडलाइंस से अपनी राय बनाते हैं, वे अक्सर चरम पर खरीदते और तलहटी में बेचते हैं। अप्रैल से अगस्त 2025 के बीच जो सबसे बड़ा सबक उभरा है, वो यही है—डेटा पर टिके रहें, विविधता रखें और शॉर्ट-टर्म शोर में दिशा न बदलें। बाजारों का स्वभाव यही है—डर भी अतिशयोक्तिपूर्ण, भरोसा भी। बुद्धिमानी बीच के रास्ते में है।

12 टिप्पणि

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    udit kumawat

    अगस्त 24, 2025 AT 18:34
    ये सब बकवास है। दो दिन में 6.6 ट्रिलियन? बस नंबर फुलाया है।
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    Jinit Parekh

    अगस्त 26, 2025 AT 16:32
    अमेरिका का बाजार गिरा तो भारत के आईटी कंपनियों का रेवेन्यू बढ़ता है, ये सिर्फ एक बात है जो यहां छुपी है। अगर टैरिफ बढ़ेगा, तो अमेरिका भारत से ज्यादा आयात करेगा-हमारी कंपनियां बड़ी हो जाएंगी।
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    Ankit Gupta7210

    अगस्त 28, 2025 AT 01:48
    फेड का डेटा-निर्भर टोन? बस बातें कर रहे हैं। जब तक चीन नहीं तोड़ता अमेरिकी डॉलर को, तब तक ये सब नाटक है। और हां, VIX 16 है? ये तो शांति का नाम है, असली तूफान अभी आने वाला है।
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    Drasti Patel

    अगस्त 28, 2025 AT 03:01
    यहाँ बताया गया है कि बाजार फंडामेंटल्स पर टिका है। लेकिन क्या ये फंडामेंटल्स असली हैं? या फिर वो अमेरिकी मीडिया के द्वारा निर्मित एक बड़ा आईलूजन है? जब एक देश अपने नागरिकों को डेब्ट में डुबो देता है, तो उसका बाजार कभी वास्तविक नहीं हो सकता।
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    Shraddha Dalal

    अगस्त 29, 2025 AT 13:04
    इस रिकवरी में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि यह टेक-सेंट्रिक नहीं है। इंडस्ट्रियल्स, यूटिलिटीज, फाइनेंशियल्स-ये सभी एक साथ उठ रहे हैं। ये एक डीप रिकवरी है, जिसमें एक नया नैरेटिव बन रहा है: एक अर्थव्यवस्था जो सिर्फ डिजिटल गिगांट्स पर निर्भर नहीं है। ये वास्तविक आर्थिक विस्तार का संकेत है।
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    mahak bansal

    अगस्त 31, 2025 AT 00:41
    मुझे लगता है कि ये बाजार ने एक बड़ा सबक सिखाया है। बाजार अक्सर बहुत जल्दी डरता है और बहुत जल्दी भूल जाता है। अगर आप डेटा देखते हैं, तो ये रिकवरी बिल्कुल तार्किक है। बस थोड़ा धैर्य रखें।
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    Jasvir Singh

    सितंबर 1, 2025 AT 07:53
    मैंने देखा है कि जब फेड की बातें धीमी होती हैं, तो बाजार ज्यादा आत्मविश्वास से चलता है। यहाँ पावेल ने ठीक वैसा ही किया। बाजार ने उनकी चुप्पी को स्वीकार कर लिया। अगर आप बाजार को समझना चाहते हैं, तो उनकी बातों की जगह उनकी चुप्पी को देखें।
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    Yash FC

    सितंबर 3, 2025 AT 07:53
    अप्रैल में जो हुआ, वो डर का अंत था। अगस्त में जो हुआ, वो भरोसे का आरंभ था। ये दोनों अलग-अलग चीजें हैं। बाजार ने सिर्फ नंबर नहीं बदले, बल्कि उसका दिमाग भी बदल गया। अब लोग भविष्य को देख रहे हैं, न कि अतीत को।
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    sandeep anu

    सितंबर 4, 2025 AT 17:54
    ये बाजार तो बिल्कुल जीवित है! दो दिन में 6.6 ट्रिलियन गायब, फिर चार महीने में वापसी? ये तो सिर्फ एक चमत्कार है! अमेरिका का दिल अभी भी धड़क रहा है-और हमें इसे देखना चाहिए! ये दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और ये बस खड़ी हो रही है!
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    Shreya Ghimire

    सितंबर 5, 2025 AT 22:29
    लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये सब एक बड़ा फेक है? जब बाजार इतना तेजी से उछलता है, तो ये सिर्फ एक ट्रिक होती है-एक ऐसी ट्रिक जिसे वॉल स्ट्रीट और फेड ने बनाया है ताकि आम आदमी अपनी बचत निवेश करे। जब आप अपना पैसा डालेंगे, तो वो उसे निकाल लेंगे। ये बाजार नहीं, एक विशाल गेम है।
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    Prasanna Pattankar

    सितंबर 7, 2025 AT 16:31
    तो ये सब जानकारी देकर आप क्या कहना चाहते हैं? कि अमेरिका अब भी दुनिया का नेता है? बस एक बात सुनिए: जब आपके पास 30 ट्रिलियन डेब्ट है, तो आपका बाजार कभी वास्तविक नहीं हो सकता। ये सब एक बड़ा फेक न्यूज़ है-जिसे आप नहीं, बल्कि आपके बैंक और ब्रोकर चाहते हैं।
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    Bhupender Gour

    सितंबर 7, 2025 AT 22:46
    फेड का टोन ठीक है और बाजार चल रहा है तो क्या बात है? अगर तेल 63 है और डॉलर 98 है तो अब बस बैठ जाओ और देखो। जिसने अप्रैल में बेच दिया वो मूर्ख था। जिसने अगस्त में खरीदा वो बुद्धिमान। बाकी सब बकवास है।

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