सुप्रीम कोर्ट जस्टिस विक्रम नाथ की छुट्टी के दौरान वरिष्ठ वकीलों को बहस से रोकने की नई पहल

सुप्रीम कोर्ट जस्टिस विक्रम नाथ की नई पहल

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ ने छुट्टी की अदालतों में वरिष्ठ वकीलों को बहस से रोकने के अपने फैसले को पुनः दोहराया है। जस्टिस नाथ का यह निर्णय मुख्य रूप से जूनियर वकीलों को अधिक अनुभव प्राप्त करने और उनके पारदर्शिता को बढ़ाने के उद्देश्य से लिया गया है। उन्होंने पहली बार यह नियम पिछले वर्ष लागू किया था और इस वर्ष भी इसे उसी सख्ती के साथ पालन कराने का प्रयास किया जा रहा है। जस्टिस नाथ का यह कदम न्यायपालिका में नई तरंगें पैदा कर रहा है।

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी की स्थिति

इस बार, जब वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी कोर्ट में उपस्थित थे, तो उन्होंने अपने कनिष्ठ सहयोगी को बहस करने के लिए कहा। इस पर जस्टिस नाथ ने स्पष्ट किया कि छुट्टियों के दौरान केवल कनिष्ठ वकील ही बहस कर सकते हैं, और उन्होंने यह नियम इसलिए बनाया है ताकि जूनियर वकील भी अपने कौशल को निखार सकें। अभिषेक मनु सिंघवी ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि काश, यह नियम सभी अदालतों में लागू होता।

न्यायपालिका में बढ़ती पारदर्शिता

जस्टिस नाथ के इस कदम से न्यायपालिका में एक नई पारदर्शिता की लहर आयी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब दोनों पक्षों के वरिष्ठ वकील उपस्थित होते हैं, तो वे चाहते हैं कि उनके कनिष्ठ सहयोगी बहस करें ताकि उन्हें अधिक अवसर मिल सके। यह केवल एक नियम नहीं है, बल्कि न्यायपालिका की एक नई सद्भावना का प्रतीक भी है। उन्होंने जूनियर वकीलों से अनुरोध किया कि वे वरिष्ठ वकीलों को इस सुनवाई के लिए फीस भी न दें, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका उद्देश्य केवल जूनियर वकीलों को बढ़ावा देना है।

कनिष्ठ वकीलों के लिए सुनहरा अवसर

जुनियर वकीलों को यह निर्णय एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है। आमतौर पर, बड़े मामलों में वे अक्सर सीनियर वकीलों की छाया में रह जाते हैं। लेकिन जस्टिस नाथ के इस फैसले ने उन्हें कोर्ट में खुलकर बहस करने का अवसर प्रदान किया है। यह उनके अनुभव को बढ़ाने और न्याय सबंधी मामलों में उनकी विशेषज्ञता को निखारने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

जस्टिस नाथ के इस फैसले से भविष्य में जूनियर वकीलों के करियर को एक नई दिशा मिल सकती है। वे अपनी योग्यता और कौशल को बेहतर ढंग से साबित कर सकते हैं। यह कदम न्यायपालिका में एक नई पहल के रूप में देखा जा रहा है, जो प्रणाली में नयापन और बदलती हुई सोच को दर्शाता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस नए नियम से कई लोग सहमत हो सकते हैं और कई लोग असहमत भी। लेकिन यह सुनिश्चित है कि यह कदम जूनियर वकीलों के हित में है और उनके करियर को एक नई दिशा देने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

सामाजिक दृष्टिकोण से विचार

सामाजिक दृष्टिकोण से विचार

जब हम इस नियम के सामाजिक दृष्टिकोण पर विचार करते हैं, तो हम देखते हैं कि यह निर्णय न्यायिक प्रणाली में सामाजिक समानता के लिए एक कदम है। न्यायपालिका को हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नए और उभरते वकील भी अपनी योग्यता का प्रदर्शन कर सकें। न्यायपालिका की यह पहल यह संदेश पहुंचाती है कि उन्हें भी मौका मिलना चाहिए।

निष्कर्ष

इस निर्णय से न्यायपालिका में कई नई तकदीरें बदल सकती हैं। शायद आने वाले समय में यह नियम अन्य अदालतों में भी अपनाया जाए और जूनियर वकीलों को नई राह मिले। जस्टिस विक्रम नाथ का यह कदम एक नई शुरुआत की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे न्याय की धारणा और अधिक सुदृढ़ और पारदर्शी होगी।

8 टिप्पणि

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    Devendra Singh

    जून 14, 2024 AT 04:31

    ये सब नियम तो बस दिखावा है। जूनियर वकीलों को मौका देने का नाम लेकर, असल में ये सिर्फ सीनियर वकीलों के लिए एक आराम का तरीका है। जब तक अदालत में बड़े-बड़े नाम नहीं आएंगे, तब तक कोर्ट का रिस्पेक्ट नहीं बढ़ेगा। ये नियम तो बस एक शोर है, जिसका कोई असली असर नहीं।

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    Nalini Singh

    जून 14, 2024 AT 14:43

    यह निर्णय न्यायिक प्रणाली के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ है। वरिष्ठ वकीलों के बहुत लंबे बहस करने के आदत से जूनियर वकीलों का विकास रुक जाता था। जस्टिस नाथ के इस कदम से न्याय का दरवाजा अब उन सबके लिए खुल गया है जिनके पास ज्ञान है, लेकिन प्रतिष्ठा नहीं। यह समाज के लिए एक उदाहरण है कि कैसे विरासत के बजाय योग्यता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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    Sonia Renthlei

    जून 16, 2024 AT 03:15

    मुझे लगता है कि यह बहुत बड़ा कदम है, लेकिन मैं थोड़ा चिंतित हूँ कि क्या यह नियम सिर्फ सुप्रीम कोर्ट तक ही सीमित रह जाएगा? क्या हम इसे हाई कोर्ट, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट तक भी लागू कर सकते हैं? मैंने कई जूनियर वकीलों से बात की है जो बहुत तैयार हैं, लेकिन उन्हें मौका नहीं मिलता। अगर इस नियम के साथ ट्रेनिंग प्रोग्राम भी जुड़ जाएं, तो यह एक वास्तविक परिवर्तन बन सकता है। क्या हम इसके लिए एक नेशनल ट्रेनिंग सेल भी बना सकते हैं? बस एक नियम लागू करने से ज्यादा जरूरत है - एक समर्थन संरचना।

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    Aryan Sharma

    जून 17, 2024 AT 19:13

    ये सब बकवास है। असल में ये सब कोर्ट के अंदर एक गुप्त बाजार है। जो बड़े वकील बहस करते हैं, वो अपने क्लाइंट्स को बताते हैं कि उन्होंने कितना लड़ा। अब जूनियर को भेज दिया, तो क्लाइंट्स को क्या लगेगा? ये तो बस एक चाल है - बड़े वकील अब घर बैठे बैठे पैसे कमा रहे हैं, और जूनियर उनकी जगह खड़े हो गए। ये नियम तो एक बड़ा धोखा है।

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    UMESH DEVADIGA

    जून 19, 2024 AT 18:41

    मैंने देखा है कि जूनियर वकील कितने डरे हुए होते हैं जब वो कोर्ट में खड़े होते हैं। अगर ये नियम उनकी आत्मविश्वास बढ़ाएगा, तो मैं इसका समर्थन करता हूँ। लेकिन अगर वो गलत बात कह दें, तो क्या उनकी जिंदगी खराब नहीं हो जाएगी? मैं चाहता हूँ कि इस नियम के साथ एक ट्रायल वर्कशॉप भी हो। बस भेज देना नहीं, तैयार करना भी जरूरी है।

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    Roshini Kumar

    जून 21, 2024 AT 10:59

    अरे भाई, ये तो बस एक नए नियम का नाम लेकर एक बड़े वकील का नाम बढ़ाने का तरीका है। जिसने ये नियम बनाया, उसका नाम अब ट्रेंड कर रहा है। और जूनियर वकील? वो तो बस एक बर्बर टूल हैं जिन्हें इस्तेमाल किया जा रहा है। 😏

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    Siddhesh Salgaonkar

    जून 23, 2024 AT 02:25

    ये नियम तो बहुत बढ़िया है 🙌 लेकिन अगर जूनियर वकील गलत बात कह दे तो फिर क्या होगा? क्या वो अपनी नौकरी खो देगा? ये तो बस एक लाइट वर्जन है जिसमें बड़े वकील अपना बिजनेस चला रहे हैं। मैं तो सोचता हूँ कि इसके बाद भी जूनियर वकील को फीस देनी पड़ेगी, बस अब वो फीस बड़े वकील को नहीं, बल्कि उसके असिस्टेंट को देनी पड़ेगी 😅

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    Arjun Singh

    जून 24, 2024 AT 07:37

    लेकिन ये नियम तो बस एक ट्रेंड है। अगर जूनियर वकील को बहस करने का मौका देना है, तो उन्हें ट्रेनिंग दो। ये नियम तो बस एक एक्सपोज़र गेम है - बिना स्किल के बहस करने का नाम लेकर लोगों को भ्रमित करना। अगर ये असली बदलाव है, तो इसके बाद एक फीडबैक सिस्टम भी होना चाहिए। वरना ये बस एक और ब्रांडिंग एक्ट है।

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