पैरालंपिक्स 2024: योगेश कथूनिया ने डिस्कस थ्रो में जीता लगातार दूसरा सिल्वर मेडल

योगेश कथूनिया का दूसरा पैरालंपिक सिल्वर

भारत के प्रसिद्ध पैरा-एथलीट योगेश कथूनिया ने पेरिस 2024 पैरालंपिक खेलों में डिस्कस थ्रो के F56 इवेंट में सिल्वर मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है। 27 वर्षीय योगेश, जिन्होंने पहले भी टोक्यो 2020 पैरालंपिक्स में सिल्वर मेडल अपने नाम किया था, ने इस बार अपने पहले ही थ्रो में 42.22 मीटर की दूरी हासिल की। उनके इस प्रदर्शन ने उन्हें लगातार दूसरा सिल्वर मेडल दिलाया।

ब्राज़ील के क्लॉडिनी बतिस्ता ने जीता गोल्ड

ब्राज़ील के क्लॉडिनी बतिस्ता ने नये पैरालंपिक रिकॉर्ड के साथ 46.86 मीटर की दूरी पर गोल्ड मेडल अपने नाम किया, जबकि ग्रीस के कांस्टेंटीनोस त्जोउनिस ने 41.32 मीटर की थ्रो से ब्रॉन्ज़ मेडल जीता। क्लॉडिनी के प्रदर्शन को देखते हुए यह स्पष्ट था कि स्वर्ण पदक की चुनौती कठिन होगी, लेकिन योगेश ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।

चोट ने डाली बाधा लेकिन मनोबल ऊंचा

चोट ने डाली बाधा लेकिन मनोबल ऊंचा

योगेश ने अपने प्रदर्शन पर कहा कि उनका प्रथम थ्रो ही सर्वश्रेष्ठ था लेकिन इसके पश्चात उनके कंधे में दर्द ने बाधा डाली। हालांकि इस चोट के बावजूद वे निराश नहीं हैं और उन्हें भविष्य में बेहतर प्रदर्शन के प्रति आशा है। उन्होंने कहा कि वह नियमित रूप से 48 मीटर तक थ्रो कर सकते हैं और आगामी प्रतियोगिताओं में क्लॉडिनी बतिस्ता को पछाड़ने के लिए और अधिक मेहनत करेंगे।

भारत के पैरालंपिक्स 2024 में अब तक 8 पदक

योगेश कथूनिया की इस उपलब्धि ने भारत के पैरालंपिक्स 2024 के यात्रा में आठवां पदक दिलाया है, जिनमें से चार पदक एथलेटिक्स से ही आए हैं। अन्य भारतीय पदक विजेताओं में अवनी लेखारा (महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग SH1 में गोल्ड), निषाद कुमार (पुरुषों की ऊंची कूद T47 में सिल्वर), मनीष नरवाल (पुरुषों की 10 मीटर एयर पिस्टल SH1 में सिल्वर), रुबीना फ्रांसिस (महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल SH1 में ब्रॉन्ज़), मोना अग्रवाल (महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग SH1 में ब्रॉन्ज़), और प्रीति पाल (100 मीटर और 200 मीटर T35 वर्ग की प्रतियोगिताओं में दो ब्रॉन्ज़ मेडल)।

योगेश कथूनिया की प्रेरणादायक कहानी

योगेश कथूनिया की प्रेरणादायक कहानी

योगेश कथूनिया की कहानी प्रेरणा से भरी हुई है। उन्हें किशोरावस्था में गुइलान-बैरे सिंड्रोम नामक बीमारी का सामना करना पड़ा जिसने उनके चलने की क्षमता को प्रभावित किया। उन्होंने पुनर्वास के तौर पर खेलों की ओर रुख किया और धीरे-धीरे वह भारत के शीर्ष पैराअथलीटों में से एक बन गए। शॉट पुट और डिस्कस थ्रो में उनकी मजबूती और संकल्प ने उन्हें कई पदक दिलाए हैं। वह तीन बार के पैरा वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक विजेता हैं और एशियन पैरा खेलों में भी सिल्वर मेडल जीत चुके हैं।

योगेश ने न केवल अपने कठिन परिश्रम और समर्पण से खुद को साबित किया है, बल्कि उन्होंने उन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन कर दिखाया है जो किसी शारीरिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। उनका सफर भारतीय खेल इतिहास में एक महत्वपूर्ण पन्ना जोड़ता चला जा रहा है। वे निरंतर मेहनत कर रहे हैं और हमें उम्मीद है कि वे आगामी प्रतियोगिताओं में भी अपने देश का नाम रोशन करेंगे।

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